तोरई की खेती के लिए कार्बनिक पदार्थों से भरपूर उपजाऊ भूमि की जरूरत होती है. लेकिन अधिक पैदावार लेने के लिए इसकी खेती उचित जल निकासी वाली दोमट मिट्टी में करनी चाहिए. उदासीन ( सामान्य ) पी.एच. मान वाली भूमि में भी इसकी खेती आसानी से की जा सकती है. इसके पौधों को शुरुआत में अंकुरित होने के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है. उसके बाद गर्मियों के मौसम में इसका पौधा अधिकतम 35 डिग्री के आसपास तापमान को भी सहन कर सकता है.इसके बीजों की रोपाई खेत में तैयार की गई धोरेनुमा क्यारियों में की जाती है.. इसके पौधे जमीन की सतह पर फैलकर बढ़ते हैं..तोरई के पौधों को सिंचाई की जरूरत बीजों के अंकुरित होने और पौधों पर फल बनने के दौरान अधिक होती है. इस दौरान पौधों की तीन या चार दिन के अंतराल में हल्की हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए. गर्मियों के मौसम में पौधे के विकास के दौरान सप्ताह में एक बार पानी देना उचित होता है. तोरई के पौधों को भी बाकी बेल वाली की फसलों की तरह अधिक उर्वरक की आवश्यकता होती है. इसके लिए शुरुआत में खेत की तैयारी के वक्त लगभग 12 से 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में डालनी चाहिए.तोरई की अलग अलग किस्मों के फल बीज रोपाई के लगभग 70 से 80 दिन बाद पककर तैयार हो जाते हैं. इसके फलों की तोड़ाई कच्चे रूप में ही कर लेनी चाहिए.